Monday, June 27, 2016

बर्बाद।

कुछ भीतर कुछ बाहर,
निशां बाकी है आज भी।

यादें जिंदा थी और हैं,
कल भी और आज भी।

उम्मीदें थी और रहेगी,
अब भी और आगे भी।



वक्त  बीता संग तारीखें ढली,
बदल गए वो भी और हम भी।

ऐसा क्या था और क्यों था,
हम समझे भी और नहीं भी।

गऐ हैं हम ऐसे दोराहे पर,
जहां जिदंगी भी है, मौत भी।



बदस्तूर जारी रहेगी खुद से ये जंग,
चाहते हैं कि खत्म हो भी, नहीं भी।

यूँ ही सिरफिरा  नहीं पुकारते लोग मुझे,
बर्बाद हुँ मैं और तबाह हो जाओगे तुम भी।



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